*अमिताभ बच्चन की भी सुनो*
Wednesday, June 29, 2022
*अमिताभ बच्चन की भी सुनो*
1/87, KBC केवल बच्चन चमत्कार YDMS👑
▶️DDM-Live Manoranjan YDMS👑
2001 से अब तक नकारात्मक मीडिया से बचाने का अभियान घलाया युगदर्पण ने, शीघ्र धन पाने KBC की राह जाने वालों को, भ्रामक मीडिया से हानी होगी।
अपने लाभ हेतु ही सही, अब भ्रामक मीडिया विरुद्ध अमिताभ बच्चन की तो सुनोगे।
-तिलक रेलन आज़ाद वरिष्ठ पत्रकार,
युगदर्पण®2001 मीडिया समूह YDMS👑
https://youtube.com/playlist?list=PL_Po5OO71WlRfK8wPp8LQJGtV2TLzjtB3
Wednesday, August 4, 2021
सीधा प्रसारण- शिक्षा केमं अनुराग ठाकुर, धर्मेन्द्र प्रधान
सीधा प्रसारण- शिक्षा केमं अनुराग ठाकुर, धर्मेन्द्र प्रधान
👉PL 127, पर्या वायु, जल शिक्षा पर्यटन व बहुमुखी उत्थान दर्पण-🚩
🔑DD-Live YDMS👑 दूरदर्पण
*युगदर्पण त्वरित समाचार प्रस्तुति 4 अगस्त 21* प्रमं मोदी के नेतृत्व में शिक्षा नीति को आरम्भ से ही, बहुमुखी विकास का सुदृढ़ आधार निर्माण करने के प्रयास 👀 शिक्षा केमं अनुराग ठाकुर, धर्मेन्द्र प्रधान मीडिया को संबोधित, सीधा प्रसारण। पर्या वायु, जल शिक्षा पर्यटन व बहुमुखी उत्थान दर्पण-🚩प्ले सूची के 127 पर उपलब्ध।
तिलक रेलन आज़ाद वरिष्ठ पत्रकार-युगदर्पण ®2001 मीडिया समूहYDMS👑
https://youtube.com/playlist?list=PL3G9LcooHZf3OEHCOBetl9CGsXnDlq9LS
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है | इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए।
आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
Monday, January 20, 2020
YDMS👑प्रस्तुति... DD-Live YDMS दूरदर्पण, CD-Live YDMS चुनावदर्पण देश को समर्पित, दो यू-टयूब राष्ट्रीय चैनल.
👑आज अपने जन्म दिवस के अवसर पर, देश को समर्पित हैं, दो यू-टयूब राष्ट्रीय चैनल
सकारात्मक सार्थक श्रेष्ठ चयनित समाचार का प्रतीक YDMS👑प्रस्तुति
DD-Live YDMS दूरदर्पण विविध राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय विषयों पर दो दर्जन प्ले-सूची https://www.youtube.com/channel/UCHK9opMlYUfj0yTI6XovOFg एवं
देश की राजनीति पर युगदर्पण मीडिया समूह का नया यू-टयूब चैनल CD-Live YDMS चुनावदर्पण
https://www.youtube.com/channel/UCjS_ujNAXXQXD4JZXYB-d8Q/channels?disable_polymer=true
कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका; विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए। आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
सकारात्मक सार्थक श्रेष्ठ चयनित समाचार का प्रतीक YDMS👑प्रस्तुति
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देश की राजनीति पर युगदर्पण मीडिया समूह का नया यू-टयूब चैनल CD-Live YDMS चुनावदर्पण
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कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका; विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए। आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
Sunday, September 4, 2016
शिक्षक दिवस
शिक्षक दिवस - इतना तो हम सभी जानते हैं कि भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन (5 सितंबर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। किन्तु क्यों ? संभवतः सब नहीं जानते हों।
सर्वपल्ली डॉ राधा कृष्णन जी

वैसे तो विश्व के कई देशों में गुरु के सम्मान में टीचर्स डे अर्थात शिक्षक दिवस मनाया जाता है किन्तु भारत में यह परम्परा युगों युगों से चली आ रही है। सत युग हो द्वापर या त्रेता गुरु शिष्य परम्परा के अनुपम उदाहरण मिलते हैं। जिसमें गुरु को साक्षात् परमेश्वर का स्थान दिया गया है।
'गुरु ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मैः श्री गुरुवेः नमः।।'
अर्थात गुरू ही ब्रहमा है, गुरू ही विष्णु है और गुरु की महेश है। साक्षात परब्रह्म स्वरूप ऐसे गुरू को नमस्कार।
5 सित 1888 को तमिलनाडु में जन्मे, स्वतन्त्र भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति 1952 से 1962 रहे डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ राजेन्द्र प्रसाद के पश्चात् भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक होने के साथ ही एक प्रख्यात शिकसजविद भी थे। इन्हीं गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। उन्हीं के जन्मदिन (5 सितंबर) को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
राजनीती में आने से पूर्व उन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 40 वर्ष शिक्षक के रूप में व्यतीत किये थे। उनमें एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण उपस्थित थे। उन्होंने अपना जन्म दिन अपने व्यक्तिगत नाम से नहीं अपितु सम्पूर्ण शिक्षक समुदाय को सम्मानित किये जाने के उद्देश्य से शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा व्यक्त की थी जिसके परिणामस्वरूप आज भी सारे देश में उनका जन्म दिन (5 सितम्बर) को प्रति वर्ष शिक्षक दिवस के नाम से ही मनाया जाता है।
भारत तथा भारतीयता के शत्रु , जो हमारे इतिहास को मिटाने नकारने के लिए कुतर्कों का सहारा लेते रहते हैं, अवश्य ही मेरी बात को झुठलाने हेतु यह कुतर्क दे सकते है कि शिक्षक का महत्त्व आप युगों युगों से मानते रहे हैं क्या प्रमाण है? सर्वपल्ली डॉ राधा कृष्णन जी 19 वीं शताब्दी के हैं तो उनका जन्मदिन (५ सितंबर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाकर कैसे कह सकते हैं कि गुरु युगों युगों से आपके पूजनीय रहे हैं। आपने तो शिक्षक को सम्मान देना 19 वीं शताब्दी में शुरू किया है।
इसे स्पष्ट करने हेतु विवेचन करें भारतीय इतिहास और साहित्य का, जो ऐसे प्रमाणों से भरा पड़ा है। मेरी बात की सत्यता को प्रमाणित करने तथा उनके कुतर्कों का सामना करने हेतु उनमें से कुछ ही जिज्ञासा शाँत करने में सक्षम हैं। आइये, उनमें से कुछ का अवलोकन करते हैं। --
618 वर्ष पूर्व जन्मे संत कबीर दास के दोहे में 'गुरु शिष्य'
इस विषय के 50 में से यहाँ मात्र 10 दोहे ही लिए गए है।

आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
सर्वपल्ली डॉ राधा कृष्णन जी

वैसे तो विश्व के कई देशों में गुरु के सम्मान में टीचर्स डे अर्थात शिक्षक दिवस मनाया जाता है किन्तु भारत में यह परम्परा युगों युगों से चली आ रही है। सत युग हो द्वापर या त्रेता गुरु शिष्य परम्परा के अनुपम उदाहरण मिलते हैं। जिसमें गुरु को साक्षात् परमेश्वर का स्थान दिया गया है।
'गुरु ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मैः श्री गुरुवेः नमः।।'
अर्थात गुरू ही ब्रहमा है, गुरू ही विष्णु है और गुरु की महेश है। साक्षात परब्रह्म स्वरूप ऐसे गुरू को नमस्कार।
5 सित 1888 को तमिलनाडु में जन्मे, स्वतन्त्र भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति 1952 से 1962 रहे डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ राजेन्द्र प्रसाद के पश्चात् भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक होने के साथ ही एक प्रख्यात शिकसजविद भी थे। इन्हीं गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। उन्हीं के जन्मदिन (5 सितंबर) को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
राजनीती में आने से पूर्व उन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 40 वर्ष शिक्षक के रूप में व्यतीत किये थे। उनमें एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण उपस्थित थे। उन्होंने अपना जन्म दिन अपने व्यक्तिगत नाम से नहीं अपितु सम्पूर्ण शिक्षक समुदाय को सम्मानित किये जाने के उद्देश्य से शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा व्यक्त की थी जिसके परिणामस्वरूप आज भी सारे देश में उनका जन्म दिन (5 सितम्बर) को प्रति वर्ष शिक्षक दिवस के नाम से ही मनाया जाता है।
भारत तथा भारतीयता के शत्रु , जो हमारे इतिहास को मिटाने नकारने के लिए कुतर्कों का सहारा लेते रहते हैं, अवश्य ही मेरी बात को झुठलाने हेतु यह कुतर्क दे सकते है कि शिक्षक का महत्त्व आप युगों युगों से मानते रहे हैं क्या प्रमाण है? सर्वपल्ली डॉ राधा कृष्णन जी 19 वीं शताब्दी के हैं तो उनका जन्मदिन (५ सितंबर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाकर कैसे कह सकते हैं कि गुरु युगों युगों से आपके पूजनीय रहे हैं। आपने तो शिक्षक को सम्मान देना 19 वीं शताब्दी में शुरू किया है।
इसे स्पष्ट करने हेतु विवेचन करें भारतीय इतिहास और साहित्य का, जो ऐसे प्रमाणों से भरा पड़ा है। मेरी बात की सत्यता को प्रमाणित करने तथा उनके कुतर्कों का सामना करने हेतु उनमें से कुछ ही जिज्ञासा शाँत करने में सक्षम हैं। आइये, उनमें से कुछ का अवलोकन करते हैं। --
618 वर्ष पूर्व जन्मे संत कबीर दास के दोहे में 'गुरु शिष्य'
इस विषय के 50 में से यहाँ मात्र 10 दोहे ही लिए गए है।

(41)
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय॥
बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय॥
(42)
गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि ।
बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥
बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥
(43)
सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥
(44)
गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं ।
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि॥
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि॥
(45)
शब्द गुरु का शब्द है, काया का गुरु काय।
भक्ति करै नित शब्द की, सत्गुरु यौं समुझाय॥
शब्द गुरु का शब्द है, काया का गुरु काय।
भक्ति करै नित शब्द की, सत्गुरु यौं समुझाय॥
(46)
बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाडी कै बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार।।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार।।
(47)
कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥
(48)
जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय॥
जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय॥
(49)
यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥
(50)
गुरु लोभ शिष लालची, दोनों खेले दाँव।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर की नाँव॥
गुरु लोभ शिष लालची, दोनों खेले दाँव।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर की नाँव॥
संत कबीर दास जी के लेखन का स्तर एक तो 700 वर्ष पूर्व के भारत की शिक्षा और बौद्धिक स्तर को दर्शाता है दूसरे उन्होंने गुरु महिमा का वर्णन जिस प्रकार किया है उससे यह स्पष्ट होता है कि उन्हें एक श्रेष्ठ गुरु का सानिध्य मिला, जिससे गुरु के प्रति उनके मन में आसक्ति थी तथा सबसे प्रमुख 700 वर्ष पूर्व के भारत में गुरु शिष्य परम्परा के अन्तर्गत एक सामान्य जुलाहे के मन में भी गुरु के प्रति कितना आदर सम्मान का भाव है। जब हमारे भारत में शिक्षक दिवस को औपचारिक रूप में नहीं मनाया जाता था।
अर्थात भारत में शिक्षक दिवस भले ही औपचारिक रूप में अब मनाया जाता है। इसका अर्थ यह नहीं कि शिक्षक का सम्मान नहीं था अपितु यह प्रमाण है कि आदर सम्मान अनुभूति है जो किसी भी औपचारिकता पर आश्रित नहीं है। यह मेरी बात की सत्यता को और भी बलपूर्वक स्पष्ट व प्रमाणित करता है।
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए।आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
Saturday, July 16, 2016
अंतरर्राज्य परिषद् की 11वीं बैठक को प्रमं का उद्घाटन सम्बोधन
अंतरर्राज्य परिषद् की 11वीं बैठक को प्रमं का उद्घाटन सम्बोधन

मोदी ने 3 डी पर बल देते कहा प्राय: 16 वर्ष पूर्व इसी मंच से कही गई पूर्व प्रधानमंत्री और हमारे श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की बात से शुरु करूंगा, वाजपेयी जी ने कहा था कि-
“भारत जैसे बड़े और विविधता से भरे हुए लोकतंत्र में Debate यानि वाद-विवाद, Deliberation यानि विवेचना और Discussion यानि विचार-विमर्श से ही ऐसी नीतियां बन सकती हैं जो जमीनी सच्चाई का ध्यान रखती हों। ये तीनों बातें, नीतियों को प्रभावी तरीके से अमल में लाने में भी मदद करती हैं। इंटर स्टेट काउंसिल एक ऐसा मंच है जिसका इस्तेमाल नीतियों को बनाने और उन्हें लागू करने में किया जा सकता है। इसलिए लोकतंत्र, समाज और हमारी राज्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, इस मंच का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए”।
मोदी ने इसे केंद्र -राज्य और अंतर्राज्यीय सम्बन्धों को सुदृढ़ करने का सबसे बड़ा मंच बताया। जबकि 2006 के बाद लंबे अंतराल तक ये बैठक नहीं हो पाई, किन्तु गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इस प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का प्रयास पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते कहा कि गत एक वर्ष में वे देश भर की पाँच आंचलिक परिषदों की बैठक बुला चुके हैं। मोदी ने कहा कि इस मध्य संवाद और संपर्क का क्रम बढ़ने का ही परिणाम है कि आज हम सभी यहां एकत्र हुए हैं।
“भारत जैसे बड़े और विविधता से भरे हुए लोकतंत्र में Debate यानि वाद-विवाद, Deliberation यानि विवेचना और Discussion यानि विचार-विमर्श से ही ऐसी नीतियां बन सकती हैं जो जमीनी सच्चाई का ध्यान रखती हों। ये तीनों बातें, नीतियों को प्रभावी तरीके से अमल में लाने में भी मदद करती हैं। इंटर स्टेट काउंसिल एक ऐसा मंच है जिसका इस्तेमाल नीतियों को बनाने और उन्हें लागू करने में किया जा सकता है। इसलिए लोकतंत्र, समाज और हमारी राज्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, इस मंच का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए”।
मोदी ने इसे केंद्र -राज्य और अंतर्राज्यीय सम्बन्धों को सुदृढ़ करने का सबसे बड़ा मंच बताया। जबकि 2006 के बाद लंबे अंतराल तक ये बैठक नहीं हो पाई, किन्तु गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इस प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का प्रयास पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते कहा कि गत एक वर्ष में वे देश भर की पाँच आंचलिक परिषदों की बैठक बुला चुके हैं। मोदी ने कहा कि इस मध्य संवाद और संपर्क का क्रम बढ़ने का ही परिणाम है कि आज हम सभी यहां एकत्र हुए हैं।
मोदी ने कहा देश का विकास तभी संभव है जब केंद्र और राज्य सरकारें कंधे से कंधा मिलाकर चलें। किसी भी सरकार के लिए कठिन होगा कि वो मात्र अपने दम पर कोई योजना को सफल कर सके। इसलिए दायित्वों के साथ ही वित्तीय संसाधनों की भी अपनी महत्ता है। 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की स्वीकृति के साथ केंद्रीय करों में राज्यों की भागीदारी 32 % से बढ़ाकर 42 % कर दी गई है। अर्थात अब राज्यों के पास अधिक राशि आ रही है जिसका उपयोग वो अपनी आवश्यकतानुसार कर रहे हैं।राज्यों को केंद्र से वर्ष 2014-15 की तुलना में गत वर्ष 2015-16 के 21 % अधिक राशि मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त करते कहा इसी प्रकार पंचायतों और स्थानीय निकायों को 14वें वित्त आयोग की अवधि में 2 लाख 87 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी जो विगत से काफी अधिक है।
प्राकृतिक संसाधनों से होने वाली आय में भी राज्यों के अधिकारों का ध्यान रखा जा रहा है। कोयला खदानों की नीलामी से राज्यों को आने वाले वर्षों में 3 लाख 35 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी। कोयले के अतिरिक्त भी दूसरे खनन से राज्यों को 18 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी। इसी प्रकार एक कानून में परिवर्तन द्वारा बैंक में रखे हुए प्राय: 40 हजार करोड़ रुपए को भी राज्यों को देने का प्रयास किया जा रहा है।
व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ने के कारण जो राशी बच रही है, उसे भी केंद्र सरकार आपके साथ साझा करना चाहती है। एक उदाहरण केरोसिन का ही है। गावों में बिजली कनेक्शन बढ़ रहे हैं। आने वाले तीन वर्ष में सरकार 5 करोड़ नए गैस कनेक्शन देने जा रही है। रसोई गैस की आपूर्ति भी और बढ़ेगी। इन प्रयासों का सीधा प्रभाव केरोसिन की खपत पर पड़ा है। अभी चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने शहर को केरोसिन मुक्त क्षेत्र घोषित किया है। अब केंद्र सरकार ने एक योजना शुरू की है जिसके तहत केरोसिन की खपत में कमी करने पर, केंद्र छूट के रूप में जो पैसा खर्च करता था, उसका 75 % राज्यों को अनुदान के रूप में देगा। कर्नाटक सरकार ने इस पहल पर तेजी दिखाते हुए अपना प्रस्ताव पेट्रोलियम मंत्रालय को भेज दिया था, जिसे स्वीकार करने के बाद राज्य सरकार को अनुदान का भुगतान कर दिया गया है। यदि सभी राज्य केरोसिन की खपत को 25 % कम करने का निर्णय लेते हैं और इस पर व्यवहार करके दिखाते हैं, तो इस वर्ष उन्हें प्राय: 1600 करोड़ रुपए के अनुदान का लाभ मिल सकता है।
उनके सम्बोधन में प्राय: ये बातें भी कही गईं -
व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ने के कारण जो राशी बच रही है, उसे भी केंद्र सरकार आपके साथ साझा करना चाहती है। एक उदाहरण केरोसिन का ही है। गावों में बिजली कनेक्शन बढ़ रहे हैं। आने वाले तीन वर्ष में सरकार 5 करोड़ नए गैस कनेक्शन देने जा रही है। रसोई गैस की आपूर्ति भी और बढ़ेगी। इन प्रयासों का सीधा प्रभाव केरोसिन की खपत पर पड़ा है। अभी चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने शहर को केरोसिन मुक्त क्षेत्र घोषित किया है। अब केंद्र सरकार ने एक योजना शुरू की है जिसके तहत केरोसिन की खपत में कमी करने पर, केंद्र छूट के रूप में जो पैसा खर्च करता था, उसका 75 % राज्यों को अनुदान के रूप में देगा। कर्नाटक सरकार ने इस पहल पर तेजी दिखाते हुए अपना प्रस्ताव पेट्रोलियम मंत्रालय को भेज दिया था, जिसे स्वीकार करने के बाद राज्य सरकार को अनुदान का भुगतान कर दिया गया है। यदि सभी राज्य केरोसिन की खपत को 25 % कम करने का निर्णय लेते हैं और इस पर व्यवहार करके दिखाते हैं, तो इस वर्ष उन्हें प्राय: 1600 करोड़ रुपए के अनुदान का लाभ मिल सकता है।
उनके सम्बोधन में प्राय: ये बातें भी कही गईं -
केंद्र -राज्य सम्बन्धों के साथ ही अं परि उन विषयों पर भी चर्चा का मंच है जो देश की बड़ी संख्या से जुड़े हुए हैं। कैसे नीति-निर्धारण के स्तर पर इन मुद्दों को सुलझाने के लिए एक राय बनाई जा सकती है, कैसे एक दूसरे से परस्पर जुड़े विषयों को सुलझाया जा सकता है।
इसलिए इस बार अं परि में पुंछी आयोग की रपट के साथ ही तीन और मुख्य विषयों को कार्यावली में रखा गया है।
पहला है- ‘आधार’ । संसद से ‘आधार’ एक्ट 2016 पास हो चुका है। इस कानून के पास होने के बाद अब हमें चाहे छूट हो या फिर सभी दूसरी सुविधाएं, ‘कहते में नगत स्थांतरण’ के लिए आधार के प्रयोग की सुविधा मिल गई है। 128 करोड़ की संख्या वाले हमारे देश में अब तक 102 करोड़ लोगों को आधार कार्ड बांटे जा चुके हैं। यानि अब देश की 79 % जनसंख्या के पास आधार कार्ड है। यदि वयस्कों की बात करें तो देश के 96 % नागरिकों के पास आधार कार्ड है। आप सभी के समर्थन से इस वर्ष के अंत तक हम देश के हर नागरिक को आधार कार्ड से जोड़ लेंगे।
आज के समय में साधारण सा आधार कार्ड, लोगों के सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है। सरकारी छूट या सहायता पर जिस व्यक्ति का अधिकार है, अब उसे ही इसका लाभ मिल रहा है, पैसा सीधे उसी के खाते में जा रहा है। इससे पारदर्शिता तो आई ही है, हजारों करोड़ रुपए की बचत हो रही है जिसे विकास के काम पर व्यय किया जा रहा है।
मित्रों, बाबा साहेब अम्बेडकर ने लिखा था कि- “भारत जैसे देश में सामाजिक सुधार का मार्ग उतना ही कठिन है, उतनी ही अड़चनों से भरा हुआ है जितना स्वर्ग जाने का मार्ग। जब आप सामाजिक सुधार की सोचते हैं तो आपको मित्र कम, आलोचक अधिक मिलते हैं” ।
आज भी उनकी लिखी बातें, उतनी ही प्रासंगिक है। इसलिए आलोचनाओं से बचते हुए, हमें एक दूसरे के साथ सहयोग करते हुए, सामाजिक सुधार की योजनाओं को आगे बढ़ाने पर बल देना होगा। इनमें से बहुत सी योजनाओं की रूप-रेखा, नीति आयोग में मुख्यमंत्रियों के ही उप-समूह ने तैयार की है।
अं परि में जिस एक और मुख्य विषय पर चर्चा होनी है, वह है शिक्षा । भारत की सबसे बड़ी शक्ति हमारे युवा ही हैं। 30 करोड़ से अधिक बच्चे अभी स्कूल जाने वाली आयु में हैं। इसलिए हमारे देश में आने वाले कई वर्षों तक विश्व को कुशल जनशक्ति देने की क्षमता है। केंद्र और राज्यों को मिलकर बच्चों को शिक्षा का ऐसा वातावरण देना होगा जिसमें वे आज की आवश्यकतानुसार स्वयं को तैयार कर सकें, अपने कौशल का विकास कर सकें।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के शब्दों में कहें तो- शिक्षा एक निवेश है। हम पेड़-पौधों को लगाते समय उनसे कोई शुल्क नहीं लेते। हमें पता होता है कि यही पेड़-पौधे आगे जाकर हमें प्राण वायु देंगे, पर्यावरण में सहयोग करेंगे। उसी प्रकार शिक्षा भी एक निवेश है जिसका लाभ समाज को होता है।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने ये बातें 1965 में कहीं थीं। तब से लेकर आज तक हम शिक्षा की दृष्टि से बहुत लंबी यात्रा पूरी कर चुके हैं। किन्तु अब भी शिक्षा के स्तर को लेकर बहुत कुछ किया जाना शेष है। हमारी शिक्षा व्यवस्था से बच्चे वास्तव में कितना शिक्षित हो रहे हैं, इसे भी हमें अपनी चर्चा में लाना होगा।
इसलिए बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधारने का सबसे बड़ा ढंग है कि उन्हें शिक्षा का उद्देश्य भी समझाया जाए। मात्र स्कूल जाना ही पढ़ाई नहीं है। पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए, जो बच्चों को प्रश्न पूछना सिखाए, उन्हें ज्ञान अर्जित करना और ज्ञान बढ़ाना सिखाए, जो जीवन के हर मोड़ पर उन्हें कुछ ना कुछ सीखते रहने के लिए प्रेरित करे।
स्वामी विवेकानंद भी कहते थे कि शिक्षा का अर्थ मात्र पुस्तकी ज्ञान पाना नहीं है। शिक्षा का लक्ष्य है चरित्र का निर्माण, शिक्षा का अर्थ है मस्तिष्क को सुदृढ़ करना, अपनी बौद्धिक शक्ति को बढ़ाना, जिससे स्वयं के पैरों पर खड़ा हुआ जा सके।
21वीं सदी की अर्थव्यवस्था में, जिस तरह की कुशलता और योग्यता की आवश्यकता है, उसमें हम सभी का दायित्व है कि युवाओं के पास कोई न कोई कौशल अवश्य हो। हमें युवाओं को ऐसा बनाना होगा कि वे अलग सोच व तर्क के साथ सोचें और अपने काम में रचनात्मक दिखें।
पहला है- ‘आधार’ । संसद से ‘आधार’ एक्ट 2016 पास हो चुका है। इस कानून के पास होने के बाद अब हमें चाहे छूट हो या फिर सभी दूसरी सुविधाएं, ‘कहते में नगत स्थांतरण’ के लिए आधार के प्रयोग की सुविधा मिल गई है। 128 करोड़ की संख्या वाले हमारे देश में अब तक 102 करोड़ लोगों को आधार कार्ड बांटे जा चुके हैं। यानि अब देश की 79 % जनसंख्या के पास आधार कार्ड है। यदि वयस्कों की बात करें तो देश के 96 % नागरिकों के पास आधार कार्ड है। आप सभी के समर्थन से इस वर्ष के अंत तक हम देश के हर नागरिक को आधार कार्ड से जोड़ लेंगे।
आज के समय में साधारण सा आधार कार्ड, लोगों के सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है। सरकारी छूट या सहायता पर जिस व्यक्ति का अधिकार है, अब उसे ही इसका लाभ मिल रहा है, पैसा सीधे उसी के खाते में जा रहा है। इससे पारदर्शिता तो आई ही है, हजारों करोड़ रुपए की बचत हो रही है जिसे विकास के काम पर व्यय किया जा रहा है।
मित्रों, बाबा साहेब अम्बेडकर ने लिखा था कि- “भारत जैसे देश में सामाजिक सुधार का मार्ग उतना ही कठिन है, उतनी ही अड़चनों से भरा हुआ है जितना स्वर्ग जाने का मार्ग। जब आप सामाजिक सुधार की सोचते हैं तो आपको मित्र कम, आलोचक अधिक मिलते हैं” ।
आज भी उनकी लिखी बातें, उतनी ही प्रासंगिक है। इसलिए आलोचनाओं से बचते हुए, हमें एक दूसरे के साथ सहयोग करते हुए, सामाजिक सुधार की योजनाओं को आगे बढ़ाने पर बल देना होगा। इनमें से बहुत सी योजनाओं की रूप-रेखा, नीति आयोग में मुख्यमंत्रियों के ही उप-समूह ने तैयार की है।
अं परि में जिस एक और मुख्य विषय पर चर्चा होनी है, वह है शिक्षा । भारत की सबसे बड़ी शक्ति हमारे युवा ही हैं। 30 करोड़ से अधिक बच्चे अभी स्कूल जाने वाली आयु में हैं। इसलिए हमारे देश में आने वाले कई वर्षों तक विश्व को कुशल जनशक्ति देने की क्षमता है। केंद्र और राज्यों को मिलकर बच्चों को शिक्षा का ऐसा वातावरण देना होगा जिसमें वे आज की आवश्यकतानुसार स्वयं को तैयार कर सकें, अपने कौशल का विकास कर सकें।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के शब्दों में कहें तो- शिक्षा एक निवेश है। हम पेड़-पौधों को लगाते समय उनसे कोई शुल्क नहीं लेते। हमें पता होता है कि यही पेड़-पौधे आगे जाकर हमें प्राण वायु देंगे, पर्यावरण में सहयोग करेंगे। उसी प्रकार शिक्षा भी एक निवेश है जिसका लाभ समाज को होता है।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने ये बातें 1965 में कहीं थीं। तब से लेकर आज तक हम शिक्षा की दृष्टि से बहुत लंबी यात्रा पूरी कर चुके हैं। किन्तु अब भी शिक्षा के स्तर को लेकर बहुत कुछ किया जाना शेष है। हमारी शिक्षा व्यवस्था से बच्चे वास्तव में कितना शिक्षित हो रहे हैं, इसे भी हमें अपनी चर्चा में लाना होगा।
इसलिए बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधारने का सबसे बड़ा ढंग है कि उन्हें शिक्षा का उद्देश्य भी समझाया जाए। मात्र स्कूल जाना ही पढ़ाई नहीं है। पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए, जो बच्चों को प्रश्न पूछना सिखाए, उन्हें ज्ञान अर्जित करना और ज्ञान बढ़ाना सिखाए, जो जीवन के हर मोड़ पर उन्हें कुछ ना कुछ सीखते रहने के लिए प्रेरित करे।
स्वामी विवेकानंद भी कहते थे कि शिक्षा का अर्थ मात्र पुस्तकी ज्ञान पाना नहीं है। शिक्षा का लक्ष्य है चरित्र का निर्माण, शिक्षा का अर्थ है मस्तिष्क को सुदृढ़ करना, अपनी बौद्धिक शक्ति को बढ़ाना, जिससे स्वयं के पैरों पर खड़ा हुआ जा सके।
21वीं सदी की अर्थव्यवस्था में, जिस तरह की कुशलता और योग्यता की आवश्यकता है, उसमें हम सभी का दायित्व है कि युवाओं के पास कोई न कोई कौशल अवश्य हो। हमें युवाओं को ऐसा बनाना होगा कि वे अलग सोच व तर्क के साथ सोचें और अपने काम में रचनात्मक दिखें।
आज की कार्यावली में जिस एक और महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा होनी है, वह है आंतरिक सुरक्षा। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए किस प्रकार की चुनौतियां हैं, इन चुनौतियों से कैसे निपट सकते हैं, कैसे एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, इस पर चर्चा होनी है। देश की आंतरिक सुरक्षा को तब तक सुदृढ़ नहीं किया जा सकता, जब तक प्रज्ञता साँझाकरण पर केंद्रित ना हो, एजेंसियों में अधिक तालमेल ना हो, हमारी पुलिस आधुनिक सोच और तकनीक से लैस ना हो। हमने इस मोर्चे पर बड़ा लंबा मार्ग तय किया है किन्तु हमें लगातार अपनी कार्य-कुशलता और क्षमता को बढ़ाते चलना है। हमें हर समय सतर्क और अद्यतन रहना है।
अं परि की बैठक बहुत ही खुले हुए वातावरण में, बहुत ही स्पष्ट होकर एक दूसरे के विचार सुनने और साझा करने का अवसर देती है। मुझे आशा है कि आप कार्यावली के सभी विषयों पर खुलकर अपनी राय देंगे, अपने सुझाव देंगे। आपके सुझाव बहुत मूल्यवान होंगे।
जितना ही हम इन मुख्य विषयों पर एक राय बनाने में सफल होंगे, उतना ही कठिनाइयों को पार करना सरल होगा। इस प्रक्रिया में हम न केवल सहकारी संघवाद की भावना और केंद्र-राज्य सम्बन्धों को सुदृढ़ करेंगे बल्कि देश के नागरिकों के श्रेष्ठ भविष्य को भी सुनिश्चित करेंगे।
अं परि की बैठक बहुत ही खुले हुए वातावरण में, बहुत ही स्पष्ट होकर एक दूसरे के विचार सुनने और साझा करने का अवसर देती है। मुझे आशा है कि आप कार्यावली के सभी विषयों पर खुलकर अपनी राय देंगे, अपने सुझाव देंगे। आपके सुझाव बहुत मूल्यवान होंगे।
जितना ही हम इन मुख्य विषयों पर एक राय बनाने में सफल होंगे, उतना ही कठिनाइयों को पार करना सरल होगा। इस प्रक्रिया में हम न केवल सहकारी संघवाद की भावना और केंद्र-राज्य सम्बन्धों को सुदृढ़ करेंगे बल्कि देश के नागरिकों के श्रेष्ठ भविष्य को भी सुनिश्चित करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राज्यों से गुप्तचरी सूचना साझा करने को कहा जिससे देश को आंतरिक सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से लड़ने में ‘‘चौकन्ना’’ तथा ‘‘अद्यतन’’ रहने में सहायता मिलेगी।
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है |
आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए।
आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलकhttps://www.youtube.com/watch?v=kBzVDhcnrvA&index=57&list=PLaypC1Q7dot2BbeOFAWZW-beQPcYr1G8W
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Monday, July 11, 2016
शिक्षक, राष्ट्र के भविष्य निर्माता
शिक्षक राष्ट्र के भविष्य निर्माता हैं
शिक्षको का सम्मान होना चाहिए : जावड़ेकर
अपने गुरूओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए और राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर बल देते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने रविवार को पुणे फरगुसन कॉलेज में आयोजित एक समारोह में शिक्षाविदों और शिक्षकों को सम्मानित किया। ‘गुरू प्रणाम’ समारोह में उन्होंने कहा कि अपने शिक्षकों को सम्मानित करते हुए मैं पूरे देश के शिक्षकों को प्रणाम करता हूं।
अपने जीवन को मूल्यवान बनाने में अपने गुरूओं की भूमिका का स्मरण दिलाते हुए जावड़ेकर ने शिक्षकों से आग्रह किया कि वे शिक्षा को रुचिकर बनाये और इसे घसीटने वाला न बनाये।
उन्होंने कहा कि शिक्षक भारतीय शिक्षा में परिवर्तन ला सकते हैं। सरकार शिक्षकों की योग्यता में विश्वास करती है। देश में अनेक शिक्षक परिवर्तन लाने का काम कर रहे है, किन्तु सभी शिक्षकों को इस मिशन में शामिल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि शिक्षक दृढ़ है, तो वे गुणवत्ता सम्पन्न शिक्षा सुनिश्चित कर सकते है। जावड़ेकर ने कहा कि शिक्षकों के प्रयासों की सराहना की जाएगी और उनका दायित्व निर्धारित किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में गोपाल कृष्ण गोखले, बी.आर. अम्बेडकर, महात्मा फूले, गोपाल गणेश अगरकर, लोकमान्य तिलक, महर्षि कर्वे, कर्मवीर भाउराव पाटिल तथा पंजाबराव देशमुख जैसे सुधारक हुए है, जिन्होंने शिक्षा पर बल दिया। जावड़ेकर ने कहा कि शिक्षकों को विद्यार्थियों को बड़े सपने देखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
शिक्षा प्रणाली के परिवर्तन में शिक्षकों की भूमिका का उदाहरण देते हुए जावड़ेकर ने मध्यप्रदेश के सतना जिले के पालदेव गांव के बारे में अपने अनुभव को बताया। इस गांव के स्कूल की 12वीं कक्षा का परिणाम केवल 28 % था। जब इस गांव को सांसद आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत गोद लिया गया, तो जावड़ेकर ने सभी शिक्षकों को विश्वास में लेते हुए उन्हें प्रेरित किया। इसका परिणाम ये हुआ कि सात माह में उर्तीण होने का % 28 से 82 हो गया। शिक्षकों के उत्साह से परिणाम बदल सकते हैं। मानव संसाधन विकास मंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि शिक्षक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के मिशन में उत्साह से भाग लेंगे।
समारोह में जावड़ेकर ने महाराष्ट्र शिक्षा सोसाइटी के पी.एल. गावड़े, जानेमाने लेखक डी.एम.मि रासदर, प्रख्यात वैज्ञानिक डॉक्टर आर.ए.माशेलकर, शिक्षाविद शरद वाग, पी.सी.सेजवालकर, दादा पुतमबेरकर, डॉक्टर एस.एन नवलगुंडकर और डॉक्टर वानी को सम्मानित किया।
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए।
आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
शिक्षको का सम्मान होना चाहिए : जावड़ेकर
अपने जीवन को मूल्यवान बनाने में अपने गुरूओं की भूमिका का स्मरण दिलाते हुए जावड़ेकर ने शिक्षकों से आग्रह किया कि वे शिक्षा को रुचिकर बनाये और इसे घसीटने वाला न बनाये।
उन्होंने कहा कि शिक्षक भारतीय शिक्षा में परिवर्तन ला सकते हैं। सरकार शिक्षकों की योग्यता में विश्वास करती है। देश में अनेक शिक्षक परिवर्तन लाने का काम कर रहे है, किन्तु सभी शिक्षकों को इस मिशन में शामिल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि शिक्षक दृढ़ है, तो वे गुणवत्ता सम्पन्न शिक्षा सुनिश्चित कर सकते है। जावड़ेकर ने कहा कि शिक्षकों के प्रयासों की सराहना की जाएगी और उनका दायित्व निर्धारित किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में गोपाल कृष्ण गोखले, बी.आर. अम्बेडकर, महात्मा फूले, गोपाल गणेश अगरकर, लोकमान्य तिलक, महर्षि कर्वे, कर्मवीर भाउराव पाटिल तथा पंजाबराव देशमुख जैसे सुधारक हुए है, जिन्होंने शिक्षा पर बल दिया। जावड़ेकर ने कहा कि शिक्षकों को विद्यार्थियों को बड़े सपने देखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
शिक्षा प्रणाली के परिवर्तन में शिक्षकों की भूमिका का उदाहरण देते हुए जावड़ेकर ने मध्यप्रदेश के सतना जिले के पालदेव गांव के बारे में अपने अनुभव को बताया। इस गांव के स्कूल की 12वीं कक्षा का परिणाम केवल 28 % था। जब इस गांव को सांसद आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत गोद लिया गया, तो जावड़ेकर ने सभी शिक्षकों को विश्वास में लेते हुए उन्हें प्रेरित किया। इसका परिणाम ये हुआ कि सात माह में उर्तीण होने का % 28 से 82 हो गया। शिक्षकों के उत्साह से परिणाम बदल सकते हैं। मानव संसाधन विकास मंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि शिक्षक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के मिशन में उत्साह से भाग लेंगे।
समारोह में जावड़ेकर ने महाराष्ट्र शिक्षा सोसाइटी के पी.एल. गावड़े, जानेमाने लेखक डी.एम.मि रासदर, प्रख्यात वैज्ञानिक डॉक्टर आर.ए.माशेलकर, शिक्षाविद शरद वाग, पी.सी.सेजवालकर, दादा पुतमबेरकर, डॉक्टर एस.एन नवलगुंडकर और डॉक्टर वानी को सम्मानित किया।
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए।
आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
भाप्रौसं मुंबई की दीक्षांत समारोह पोशाक होगी खादी !
भाप्रौसं मुंबई की दीक्षांत समारोह पोशाक होगी खादी !

नदि तिलक। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं), मुंबई ने अपने दीक्षांत समारोह की पोशाक के लिए खादी का चयन किया है। गुजरात विश्वविद्यालय के बाद अब खादी ने प्रमुख भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं), मुंबई के अधिकारियों के दिल में स्थान बनाया है। खादी अपनाने के बारे में आग्रह और लोकप्रियता से आकर्षित होकर संस्थान ने दीक्षांत समारोह के समय छात्रों द्वारा पहने जाने के लिए 3,500 खादी के अंगवस्त्रम बनाने को कहा गया है। यह एक महत्वपूर्ण पग है और यह दर्शाता है कि खादी का स्थान जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ रहा है। भाप्रौसं मुंबई के निदेशक प्रोफेसर देवांग खाखर ने कहा कि खादी हमारा राष्ट्रीय प्रतीक है और छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना भरने के लिए हमने खादी को अपनाया है।
आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
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