विहिप का दवाबः मिशनरीज स्कूलों में अब प्राचार्य और सरस्वती
स्वतंत्रता के 67 वर्षों में प्रथम बार विलक्षण परिवर्तन
युदस रायपुर :विश्व हिंदू परिषद के दबाव में कैथलिक मिशनरीज अंततः को झुकना ही पड़ा। बस्तर क्षेत्र के कैथलिक मिशनरीज विहिप के दबाव में अपने स्कूलों के प्रिंसिपल को फादर के बदले, अब प्राचार्य और उपप्राचार्य कहेंगे। विहिप ने कहा था कि मिशनरीज स्कूलों में जिन्हें फादर कहा जाता है उन्हें प्रायार्य, उपप्राचार्य या सर कहा जाए।
विहिप के दवाब में मिशनरीज, स्कूलों में मां सरस्वती का चित्र लगाने के लिए भी सहमत हो गए हैं। इसके साथ ही ये विहिप द्वारा सुझाए उन महापुरुषों के भी चित्र लगाएंगे, जिनका राष्ट्र हित में शिक्षा के क्षेत्र में योगदान रहा है। बस्तर के जगदलपुर में एक वक्तव्य में बताया गया है कि रविवार को इन मुद्दों पर दोनों समूहों के बीच बैठक हुई थी।
बस्तर जिले के विहिप अध्यक्ष सुरेश यादव और बस्तर कैथलिक समुदाय के प्रवक्ता अब्राहम कन्नामपला ने इस समझौते पर संयुक्त रूप से हस्ताक्षर किए हैं। आदिवासी बहुल बस्तर जिले में कैथलिक मिशनरिज के 22 स्कूल हैं। एक विशेष केरल से अधिक क्षेत्र में यहां मिशनरीज का विकास हुआ है। दोनों के संयुक्त वक्तव्य के अनुसार, 'नोटिस बोर्ड और बस्तर के सभी कैथलिक शिक्षण संस्थानों को सूचित कर दिया गया है कि फादर को प्राचार्य, उपप्राचार्य या सर से संबोधित किया जाए।
इस वक्तव्य के साथ यह भी जोड़ा गया है कि कैथलिक समुदाय के कारण यदि कोई समुदाय, संप्रदाय और समाज को दुख पहुंचा है तो हमें खेद है। विहिप ने बस्तर क्षेत्र में घर वापसी कार्यक्रम के तहत, कई मुद्दों को उठाते हुए लंबे समय से मिशनरीज को निशाने पर रखा है। इसके तहत नवधर्मान्त्रित ईसाईयों को विहिप फिर से हिन्दू बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है। विहिप इस योजना के तहत कई वंचित गांवों में जाकर, उन हिन्दू बना रहा है।
जगदलपुर के पादरी के उस विवादित वक्तव्य पर जिसमें उन्होंने कहा था कि इस क्षेत्र में मिशनरीज स्कूल को चर्च बनाना चाहिए; विहिप ने बस्तर जिले के आयुक्त को पत्र भेजा था। पत्र की प्रति मुख्यमंत्री रमन सिंह और प्रदेश के राज्यपाल को भी भेजी गई थी। इस पत्र में विहिप ने लिखा था कि पादरी का वक्तव्य सांप्रदायकिता को बढ़ाने वाला और संकुचित विचार को दर्शाता है।
पत्र में यह आरोप भी लगाया गया था कि यहा मिशनरीज हिन्दू समाज पर शिक्षा के बहाने अलोकतांत्रिक दबाव बना रहे हैं। विहिप मांग करती है कि फादर को प्राचार्य और गुरुजी में बदला जाए और इनके स्कूलों में मां सरस्वती की मूर्ति लगाई जाए। पादरी के वक्तव्य पर पैदा हुए विवाद को देखते हुए मिशनरिज ने सफाई दी थी, उनके निर्देशों को अपनाने का हमारा कोई प्रयोजन नहीं है।
सुरेश यादव ने कहा, 'हम अपने वक्तव्य पर आज भी स्थिर हैं। हिन्दू विद्यार्थियों की भावना के मद्देनजर फादर को प्राचार्य करने की हमारी मांग लंबे समय से थी। हम लोगों ने मिशनरीज से पूछा था कि फादर का अर्थ क्या होता है? पिता होता है। हिन्दुओं में पिता एक ही होता है। ऐसे में हम शिक्षक को फादर कैसे कह सकते हैं? मिशनरीज ने उत्तर में कहा था कि बाइबल में इसका अर्थ गॉड फादर से हैं। मैंने कहा कि बाइबल एक धार्मिक ग्रंथ है। इसे स्कूलों में क्यों लागू करना चाहते हैं? और अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षक को फादर नहीं कहा जाता है। यहां ऐसा क्यों है?'
दूसरी तरफ सुरेश यादव ने कहा, 'सरस्वती को मां कहने में कोई विवाद जैसी स्थिति नहीं है। मां और बहनजी तो आदर के शब्द हैं। हम लोग बुजुर्ग महिला को माताजी कहकर सम्मान देते हैं और किसी भी युवती को बहनजी कहकर आदर देते हैं। हम किसी भी संबोधन से पहले माताएं और बहनें कहते हैं। किन्तु हम किसी को पिता नहीं कहते हैं। बस्तर कैथलिक समुदाय के प्रवक्ता ने कहा कि हमारा किसी को आहत करने का विचार कभी नहीं रहा है। हमने किसी पर कभी भी फादर कहने का दबाव नहीं बनाया। हम लोग अब सरस्वती की मूर्ति लगाने पर भी राजी हो गए हैं।'
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए।
आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
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